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vipassana Global Studies

विपश्यना गलोबल स्टडीज गौतमबुद्ध के प्रति, जिन्होंने धर्म सिखाया, धर्म के प्रति, जो विश्वजनीन है तथा संघ के प्रति, जिन्होंने बुद्ध की शिक्षा को अक्षुण्ण ही नहीं रखा, बल्कि उसका अनुशीलन किया है, मेरी कृतज्ञता के भाव तथा मेरी श्रद्धा अगाध है । - सत्यनारायण गोयन्का “वेबू सयाडो दूसरों से बातें ज्यादा नहीं करते थे; लेकिन मेरे साथ उन्होंने बहुत बातें कीं। उन्होंने कहा था, “तुम्हारे पास पारमी है। तुम्हें 'सासन' की वृद्धि करनी होगी। याद रखो; 'सासन' वृद्धि' करने का अर्थ है, किसी को आर्य अष्टांगिक मार्ग पर आरूढ़ करना अर्थासत उसे शील समाधि और प्रज्ञा में प्रस्थापित करना। इसी को 'सासन' की वृद्धि कहते हैं। भिक्षुओं को विहार, भोजन, वस्त्र और दवाइयां जैसी जरूरी चीजें देना 'सासन' की सहायता करने के लिए है। यह केवल 'सासनानुकूल' का कार्य है, 'सासन' को फैलाना नहीं। तुम्हें तो 'सासन' की वृद्धि करनी है। करो। अभी करो। अगर तुम देर करोगे तो तुम्हारे संपर्क में रहे लोग धर्मलाभ से वंचित होंगे। इसलिए अभी शुरू करो।” जब मैं स्टेशन वापस आया था तो मैंने वहीं, रेल के डिब्बे में उप-स्टेशन मास्टर को सिखाना शुरू कर दिया, जो मेरे साथ था। तब से मैं ध्यान का आचार्य बना था।”

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